रविवार, 25 दिसंबर 2011

तीन ग़ज़लें


जिन्दगी में जो मिला मुझे, वो "मेरे" सब का है.
जहां रोशन हुआ जिस चराग़ से, वो मेरे रब का है.


दामन फूलों से भर गया, खुशबू फैली है फ़िज़ां में,
कांटों की सेज़ मिली कबूल, तोहफ़ा मेरे रब का है.
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मुहब्बत के धागों में, कई रंग हैं.
कोई अपना रूठा, तो कोई संग है.


दिल में बसा लिया किसी को तो, 
कोई तनहा, उदास  और बेरंग है.
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जिन्दगी इक रंगीन किताब है, इसे दिल की नज़र  से देखो.
हर धड़कन में मोहब्बत आबाद है, इसे दिल की नज़र से देखो.


कारवां तो चलता है, कदम दर  कदम  मंजिल की तरफ़,
कितनी दूर है, मेरा हमसफ़र, इसे दिल की नज़र से देखो.
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शनिवार, 10 दिसंबर 2011

कोशिश तो हो


जो नाराज हो कर जा रहा, उसे रोकने की कोशिश तो हो.
जो जबरन घुसने जा रहा, उसे रोकने की कोशिश तो हो.


हवा ग़र चल रही,नाइन्साफ़ी की हर तरफ इस दौर में,
बन के कोई ढाल,इस तलवार को रोकने की कोशिश तो हो. 


ये इन्सां दर दर भटक रहा, सेहत के दरख़्तों की ख़ातिर.
पेड़-पत्तों में जा रही भटकन को, रोकने की कोशिश तो हो.
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बुधवार, 30 नवंबर 2011

मेरे ख़त..


मेरे ख़त ने यूं उनको,  बुलाया होले से.
राज़-ए-दिल हमने भी,छुपाया  होले से.


बन्द पलकों भरे थे,ख़्वाबो के मोती  ,
नींद ने भी आंखों ,को जगाया होले से.


पर्दानशी चाहिए,इस बेदर्द जमाने को, 
जुल्फ़ों को चिल्मन बनाया ,बस होले से.


खूबसूरत सी जिन्दगी में चार चान्द हों,
इस लिए, वफ़ा का पाठ पढाया होले से..

शनिवार, 26 नवंबर 2011

नींद ने आंखों को जगाया होले से


मेरे ख़त ने यूं उनको,  बुलाया होले से.
राज़-ए-दिल हमने भी,छुपाया  होले से.


बन्द पलकों में भरे थे,ख़्वाबो के  मोती  ,
नींद ने भी आंखों ,को जगाया होले से.


पर्दानशी चाहिए,इस बेदर्द जमाने को, 
जुल्फ़ों को, चिल्मन बनाया होले से..


खूबसूरत सी जिन्दगी में चार चान्द हों,
इस लिए, वफ़ा का पाठ पढाया होले से..
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सोमवार, 14 नवंबर 2011

्रह गुज़र की तलाश में


रफ़्ता रफ़्ता कट गया सफ़र, हमसफ़र की तलाश में...
बैठे है वो अपने ही आशियां, में रहगुज़र की तलाश में..
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कदमों की आहट से यूं लगा कि मुराद-ए-मंजिल करीब है. 
इन्तज़ार के बाद एहसास हुआ हवा के झोंके ने दस्तक दी थी।
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लगता है जैसे अभी अभी नहाएं हैं ..
किसी पुराने किस्से को गुनगुनाएं हैं।


शनिवार, 5 नवंबर 2011

दिल में उजाला कैसे होगा


किसी के घर  की, रोशनी चुरा कर,
अपने दिल में, उजाला कैसे होगा।


मुफ़लिसी में अगर,बच्चे होंगे भूखे,
तो,मां के पेट का निवाला कैसे होगा। 


रहम नहीं, इन्सां का इन्सां के लिए,
तो मेहरबां कैसे, उपर  वाला होगा।


जो चला, मख़मली कदमों से ताउम्र,
इन पत्थरों में खुद को सम्भला कैसे होगा।


बुलन्द हौंसलों से जो चला, मुश्किल राहों पे,
उस मंजिल पे,जमाने का ताला कैसे होगा।

रविवार, 30 अक्टूबर 2011

रूह ने दिल से बात की


रूह ने मुस्कुरा  कर, दिल से बात की.
आंखों ने भी सपनों से,  मुलाकात की.


सदा सुन के जाग उठा, नींद से सवेरा,
महफ़िल ने ग़ज़ल से,  शुरूआत की.


नफ़रतों के जाले साफ़ कर दिए हमने,
हैरां थे सब, कहा ये किसने करामात की.
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शनिवार, 29 अक्टूबर 2011

रंगीन असमां


हमने देखा उस रगींन आसमां के तारों को 
हमने देखा इस जमीं के हसीन अंगारों को


सपने कभी ना टूटे, इन मासूम  आंखों के 
नमन करते हम, मंदिर,मस्जिद,गुरूद्वारों को.

शनिवार, 1 अक्टूबर 2011

तिनके आशियाने के


मंजिल भी आसां हो जाएगी
सफ़र का आग़ाज़ तो कीजिए.


आसमां मुट्ठी में कैद हो जाएगा,
अपने परिन्दों को आवाज़ तो दीजिए.
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मुहब्बत के धागों में, कई रंग होते है.
याद में उनकी हम, दिन में भी सोते हैं.


भरोसा ना हो खुद पर, तो वादा ना करो,
इक वादा टूटने से जाने कितने अरमां रोते हैं.
॒॒॒॒॒॒॒॒॒॒॒॒॒॒॒॒॒॒॒॒॒॒॒॒॒

दोस्ती रब की इबादत है, 
दोस्ती दिल की अमानत है,


बेवफ़ाई भी,सज़दे में झुकती है ,
इक मुहब्बत फ़कीरी की जमानत है।
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इक सर्द हवा का झोंका था।
उसने जाते हुए मुझे रोका था।

मेरी रूह को छू के निकला
वो ना जाने कैसा धोखा था।
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जिदगी में कई रंग हैं,,मेलों की उमंग है.।
बस दिल में चाहत का दीपक जला लो.
जिन्दगी के हर पन्ने पर कितने साथी संग ।
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तुम कहीं भी रहो, तुम जहां भी रहो।
मेरे दिल में रहो या ख्वाबों में रहो।

मग़र बावफ़ा बन के रहो।
खूबसूरत लम्हे बन के रहो। 

फूल सी खुश्बू बन के रहो।
जब बात आए खुद्दारी की,
तो सीने की तरह तन के रहो।
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दिल ना होता तो शायद वफ़ा और ज़फ़ा ना होते।
प्यार का दस्तूर ना होता जख़्म नासूर ना होते।
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रविवार, 25 सितंबर 2011

चाहिए प्रेम की पतवार


जब खड़ी हो रंजिश की दीवार।
चाहिए  तब प्रेम की  पतवार।


समन्दर हो नसीब  अपना.
तो हो जाएं कश्ती पे सवार।


खिज़ां के पत्तों को समेट लो,
गुलशन में फिर आएगी बहार।


गर जीतने का भी हो ज़ज़बा,
तो किस्मत बाज़ी जाएगी हार।
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रविवार, 11 सितंबर 2011

चराग़ जला के देखो


अंधेरे घर में कभी चराग़ जला के तो देखो।
खुद को तूफ़ां का इम्तहान बना के तो देखो।


हौंसलों के फूल,  खिलते हैं खिजां  में भी,
पत्थरों  से कभी, दिल लगा  के तो  देखो।


लहरें भी चूमती हैं, प्यार करने वालों को,
समन्दर के किनारे, मकां बना के तो देखो।

मंगलवार, 23 अगस्त 2011

दिल का चराग़ जलाया हो जैसे


वर्षा की बून्दों ने शीतलता का पाठ पढाया हो जैसे।
अपनेपन को मान-सम्मान का शाल ओढाया हो जैसे।


ठोकर खा रहे थे मंजिलों की खातिर, भटके मुसाफ़िर, 
उन अन्धेरे रस्तों पे दिल का चराग़ जलाया हो जैसे।


रोक ली ख़ुदगर्जी ने,जिन परिन्दों के हौंसलों की उड़ान,
गर्द  साफ  कर, आसमां की  सीढियां चढाया हो जैसे। 
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शनिवार, 6 अगस्त 2011

दिल की दास्तां कह गए


आंख से आंसू निकले, दिल की दास्तां कह गए।
आसमां में उड़ने वाले परिन्दे, पानी में बह गए।


बुनियाद की मिट्टी बन, इमारत को रखा बुलन्द,
कन्गूरों की बेदर्द शरारत से, सारे मकां ढ़ह गए ।


अपने नसीबों को छोड़ा था, जिनकी सरपरस्ती में
लूट कर ले गए चैन-ओ-सुकूं, एहसां  भी दे गए।
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मुराद-ए-इश्क मांगने की आदत नहीं


चिराग़-ए-जिन्न घिस कर मुराद-ए-इश्क मांगनें की आदत नहीं।
करेगा फ़िक्र "वो" ही मेरी, मुझे अपनी फ़िक्र करने की आदत नहीं।


नादान है ये  जिन्दगी, जो  लेती  है मेरा  इम्तहान बार बार,
उनके हसीन  महलों में, दरबारी बनने की  हमें आदत नहीं।


अपने महबूब को सीढियां बनकर , शिखर तक पहुंचाया मैने,.
दोस्त क्या दुशमन  को भी, नज़र से गिराने  की आदत नहीं।


पसमांदगी में भी अपने अज़्म को रखा बुलन्द हमने ए दोस्त,
ताश के पत्तों में हुक्म का गुलाम बनने की आदत नहीं।


जमाने के कहर से टूटा आशियां, खुले आसमाम में सो गए,
मुझे सुर्ख़ मयकदों में रात ग़ुज़ारने की   आदत नहीं।


जिस हाल में हूं खुश हूं मैं, ए- मेरे चाराग़र मुझे,
बेहिसाब ख़्वाहिशों के कबूतर, पालने की आदत नहीं।
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रविवार, 24 जुलाई 2011

रब का सज़दा..


दिल्लगी में, क्या खोया क्या मिला।
अजीब है ये , मोहब्बत का सिला।


मन की मुराद, पूरी हुई किसी की,
तो किसी को है, जिन्दगी से गिला।


रब के सज़दे में, अभी होश हैं बाकी ,
ऎ वाईज़ इबादत के दो घूंट और पिला।

शनिवार, 9 जुलाई 2011

जिन्दगी ख़्वाबों से हार गई

जिन्दगी मेरी ख़्वाबों, से जब हार गई।
लौटे जब तलक़, गुलशन से बहार गई।


ये जिन्दगी इक खूबसूरत हादसा सा है,
कभी बरखा, कभी पतझड़, कभी बहार हुई।


ढूंढती रहती थी, जिनको नज़रें, यहां वहां,
हुआ सामना तो, तबियत क्यूं बेकरार हुई।
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बुधवार, 6 जुलाई 2011

टुकड़ों में बंटी जिन्दगी


मयकदों में यूं कटी जिदगी।
जैसे टुकड़ों में बंटी जिदगी।


रास्तों से भटके मुसाफ़िर,
किनारों से सटी जिन्दगी।


रौनक-ए- जहां में रह कर भी,
वनवासी सीता, बनी जिन्दगी।


ना चान्द, ना तारे दूर तलक,
खाली आसमां, बनी जिन्दगी।


छावं की तलाश में भटका,
कड़ी धूप सी बनी जिन्दगी।


दरवाजे बन्द हो ना हो कभी,
तालों की मांनिन्द अटी जिदगी।


मदद-ए- महल तामीर किया,
सितमग़र, तूफ़ां से ढ़ही जिन्दगी


यूं उम्र तो हर साल  बढी मग़र,
लम्हा लम्हा  , घटी जिन्दगी।
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बुधवार, 29 जून 2011

दरक गई आवाज़ चहकती सी


दरक गई आवाज़,  चहकती सी।
कहां गई बगिया, वो महकती सी।


ढूंढता है हर शख़्स, इन्सानियत को,
ईमान की जलती, चिताएं दहकती सी।


गंगा, यमुना,सरस्वती खमोश हैं क्यूं,
बहती थी जो धरती में यूं लहकती सी।
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कल तो फैले थे यहां से वहां तक वो,
अब तो जिन्दगी है बस सिमटती सी।

सोमवार, 6 जून 2011

दिल की तंग गलियां


दिल की तंग गलियों में ,मुहब्बत आबाद क्यों है।
चाहत के दीवाने ही, इस कदर बर्बाद क्यों है।


मंजिलें हैं कई , और रास्ते भी सामने बहुत हैं,
ठोकरें खा कर भी, तेरी चौखट का आरमान क्यों है।


जीने के बहाने हजारों हैं, इस दुनिया में-ए- "नरेश"
मग़र तेरी याद के साथ जीना, इतना आसान क्यों है।


कसमें खा कर भी, वादा निभा ना सके तुम,
तेरी बेवफ़ाई भी लगती, मुझे सौगात क्यों है।

राह से तुम ग़ुज़रे, वहां मुरझाए फूल खिल उठे,
मेरी रह ग़ुज़र ही, तेरे बगैर, बियाबान क्यों है।
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शनिवार, 14 मई 2011

ये जरुरी नहीं


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हसीं चेहरे के नसीब में, खुशियां हो ये जरूरी तो नहीं।
लबों पे मुस्कान दिल में, ना हो मलाल जरूरी तो नहीं।


हमनशीं   हो ग़र   तो रक़ीबो से   रसाई कैसी
यूं रक़ीबों   से भी ,  रंजिश  हो जरूरी तो नहीं ।


सफ़र में आती है, इक राह   पर मन्जिलें कई,
हर साथ चलने वाला, हमसफ़र हो जरूरी तो नहीं।


इश्क और  मुश्क छुपाए नहीं छुपते, ये सच है,
हर  आशिक-ए-जाना हो बदनाम  जरुरी तो नहीं।


मना कि अश्कबारी से गुबार दिल का निकल जाता है,
हर  अश्क से सुकूं दिल को, मिले जरुरी तो नहीं।


माना ख़तो ख़िताबत का दौर, गुज़र चुका है ऎ दोस्त,
नये दौर का आदाब, अदावत दे ये ज़रुरी तो नहीं।


अनजाने में हुई भूल को, खुदा भी माफ़ करता है,
हर ग़लती पर सज़ा ना मिले, ये जरुरी तो नहीं।


ख्वाब देखो मग़र, हकीकत के  आसपास ही रहो,
हर ख्वाब उम्मीदों पर ख़रा उतरे ये जरुरी तो नहीं।


इस जिन्दगी में, धोखे कदम कदम पर हैं मग़र,
हर आस्तीन में छुपा,  सांप हो ये जरुरी तो नहीं।
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बुधवार, 30 मार्च 2011

मीठे पलों को याद कीजिए


समां हो ग़मगीन, तो मीठे पलों को याद कीजिए।
दिल की बस्ती को, दौलत-ए-इश्क से आबाद कीजिए।


कर मशक्कत, जवां उम्मीदों को हकीकत में बदलो,
हर लम्हा बेशकीमत है, इसे यूं ही ना बर्बाद किजिए।


है फ़लसफ़ा ये आम, कि चलना ही जिन्दगी है,
मग़र क्या खोया-पाया, इसका भी तो हिसाब किजिए।


चाहा  जो आज तक न  मिला, कोई ग़म ना करो,
कल क्यों नहीं मिलेगा दिल से फ़रियाद तो किजिए।


शिकवा उसी से होगा , जो दिल के करीब है-ए-दोस्त
उसकी ख़ता को भूल कर, अपना दिल साफ़ किजिए।


तिनका-तिनका जोड़ कर, बनता है आशियाना,
दिल से दिल को जोड़ कर रिश्तों का अहसास किजिए।


आए रक़ीब भी, जो कभी मेहमां की शक्ल मे,
उसका भी हरेक सिम्त इस्तक़बाल किजिए।


जिसने किया हो गुनाह, सज़ा भी उसी को मिले.,
गर हो मुंसिफ़ तो मजलूम का इन्साफ किजिए।
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सोमवार, 28 मार्च 2011

मुझको प्याले में भी तेरी सूरत नज़र आती है


शब-ए-फ़ुर्कत में , बीते दिनों की याद आती है।
रफ़्ता-रफ़्ता यूं ही, उम्र-ए-तमाम बीत जाती है।


ये शिद्दत-ए-दर्द, बहुत हो चुकी है सनम,
फ़रिश्ते आ गए, तुम भी आओ, के जान जाती है।


हम भला ग़वारा करें, तर्के उल्फ़त को कैसे,
इक यही चीज़ तो, दुनिया में काम आती है।


मुनकतआ कैसे तआल्लुक हो, मय-ओ-मीना से,
मुझको प्याले में भी, सूरत तेरी नज़र आती है।


तलकीन कर रहे हैं, दोस्त अहबाब ’नरेश" को फिर भी,
लिखता है जो पैग़ाम, वो तेरी ही तहरीर बन जाती है।
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मंगलवार, 15 मार्च 2011

इक शमां जल रही है कहीं


दूर वीराने में , इक शमां जल रही है कहीं।
सोचता हूं ये, किसी दिलजले का दिल तो नहीं।


हम पे अहसां किया, दिल में जगाह दी तूनें,
वरना ऎसे इन्सां, प्यार के काबिल तो नहीं। 


साज़-ए-दिल बज रहा है, शेर है अंजुमन में,
जलवों की है गुफ़्तगू , कोई महफ़िल तो नहीं।


पुरख़तर है राह-ए-मुहब्बत हो, खौफ़ नहीं ज़रा भी,
इश्क वालों का डरना, इनकी फ़ितरत में शामिल तो नहीं।
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शनिवार, 12 मार्च 2011

लब सी लिए हमने, तेरे रूठ जाने के बाद


लब सी लिए हमने, तेरे रूठ जाने के बाद।
सुबह फिर ना हुई, चराग़ बुझ जाने के बाद।


हम अश-आर सुना रहे थे, भरी महफिल में,
सभी ने देखा मुझे, तेरे मुस्कुराने के बाद।


झुकता है सर मेरा, तेरी चौखट पे अब भी,
बाज़ नहीं आता यह दिल, ठुकराए जाने के बाद।


पूछते हो तुम हमसे, हमारी मुहब्बत का सिला,
नज़र फेर कर, दिल पे जख़्म लगाने के बाद।


इन्तेहा हो चुकी, बहुत सह लिए जुल्म जमाने के,
अश्कबार करेगा मेरा फसाना, मेरे ऊठ जाने के बाद।
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हमें ना आज़माओ यार


    
हम तो रिन्द हैं हमें ना आजमाओ यार ।
मयकदे से उठी है मैय्यत सर तो झुकाओ यार।


सरापा है खुमार, और जुनून दीवानगी का,
मिला के सुर्ख आंखें, और ना पिलाओ यार।


चन्द घड़ियों के मेहमां हैं, कूच कर जाएंगे,
दीदार-ए-यार कर लें, ज़रा पर्दा उठाओ यार।


तारीकियां मिलीं अब तलक, तेरे शहर में हमें,
फिर है "नरेश" चौखट पे, चराग़ तो जलाओ यार।


नसीबों में अपने लिखा था, दामन भिगोते रहना,
रास न आएगा तुम्हें, घुटनों से सर तो उठाओ यार।
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गुरुवार, 10 मार्च 2011

मंजिल के निशां



       
की ख़्वाहिशें गुलिस्तां की, तो खार हाथ आए हैं।
इस मक़तबाए इश्क ने, कई नौज़वां  मिटाए हैं।


कहा करते थे, ना छोड़ेंगे दहर तक दामन तेरा,
गर्दिशे दौरां में वो कहीं, नज़र नहीं     आए हैं।


वफ़ा के फूल भर के गए थे, दामन-ए-दिल में,
बज़्म-ए-हुस्न से हम, घबरा के लौट आए हैं।


कर बैठे भरोसा जो उस, मासूम तबस्सुम का,
इक  ऎतबार  करके, हजारों  फ़रेब खाए हैं।

गिला तुझसे करें, किस बात   का   ए-रक़ीब,
शहर-ए-वफ़ा में, किसने मंजिल के निशां पाए हैं।
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ये कैसी जिन्दगानी है




है मुख्तसर सा किस्सा , बस इतनी सी कहानी है।
उभरे हैं डूब- डूब के, भला ये कैसी जिन्दगानी है।


बज रही हैं उनके दर पे, शहनाईयां कुछ इस तरहा,
सुन सुन के जिनको, मेरे दिल पे छाई वीरानी है।


हम वफ़ादार हैं पर, रास न आ सकी हमको वफ़ा,
इक टूटा दिल बचा, माज़ी की बस निशानी है।


बेख़बर हो गए वो, तोड़ कर शीशा-ए-दिल,
चेहरे पे उनके शिकन है, न आंखों में पशेमानी है।


मांगा है आज हमने उनसे, ग़ुज़रे दौर का हर्जा,
खून-ए-ज़िग़र दिखाया उन्हें, तो हंस के कहा पानी है।


जब्त कर ए-"नरेश", होठ अपने सी ले तूं ,
साहिल पे भी मिली तुझे, मौजों की ये रवानी है।
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शनिवार, 26 फ़रवरी 2011

मेरी पांच ग़ज़लें

                           ( एक)
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हाल-ए-दिल पूछ तो लो दुनिया को दिखाने के लिए।
पोशीदा है कुछ राज़ फ़कत तुमको सुनाने के लिए ।


अपनी तकदीर का मैं हाल किसी से क्या कहूं ,
दिल में  हैं कई, ज़ख़्म ज़माने से छुपाने के लिए ।


किस्सा-ए-दर्द जो दुनिया को बताया ना अब तलक,
 मैं हूं बेताब फ़क़त , तुमको सुनाने के  लिए ।


ग़म-ए-हिज़रां से, पशेमां हूं बहुत मैं लेकिन ,
आ भी नहीं  सकता मैं , तुमको मनाने के लिए ।


और भी दर तो बहुत होंगे , दुनिया में फिर क्यूं,
बरक-ए-दुनिया है , मेरे ही आशियाने के लिए ।


ग़ैर के पहलू में हो तुम, मैं ये मन्ज़र  देखूं ,
मरना मुश्किल नहीं होगा फिर, तेरे दीवाने के लिए ।


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                                 (दो)
           ________
दबी ज़बां से उल्फत का पैग़ाम दे गया कोई ।
खिल उठे फूल दिल में, नए अरमान दे गया कोई ।


ग़मों की मार से , अब तलक ज़बां बन्द थी मग़र,
पूछ कर हाल-ए-दिल, ज़बान दे गया कोई।


कोई निशां न था , ज़मी-ओ-आसमां पर हमारा,
जुड़ा है नाम उनसे, जो इक पहचान दे गया कोई।


नासूर हो गये थे ज़ख़्म, नामुराद ज़िन्दगी को ढोते,
रखा जो हाथ कान्धे पर उसने, आराम दे गया कोई।


बिछुड़ के मुझसे वो , फिर मिला मुझे इस कदर,
यूं लगा मुझे जैसे, इक एहसान दे गया कोई ।


॑॑॑॑॑॑॑॑॑॑॑॑॑॑॑॑॑॑॑॑॑॑॑॑॑॑॑॑॑॑
                     (तीन)

इक इसां का लहू, बह गया पानी की तरहा।
इमां जो था अमृत, बह गया पानी की तरहा।


आज हर शख़्श, के चेहरे से अयां होता है,
इक अफसाना सा, माजी की निशानी की तरहा।


न कोई आह, न फरियाद, न जुस्तजू  बाकी,
सितम सह लिया, ज़माने का मेहरबानी की तरहा।


कोई मंजिल न कोई रास्ता, ना कोई मेरा वज़ूद,
हर नक्श मिट चुका है, निशानी की तरहा ।


मैंने कब किया तुमसे, दुखों का इज़हार ए दोस्त,
खुद-ब-खुद आ गया, ये बचपन से जवानी की तरहा।


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                           (चार)
           --------
गुलशन सज़ाया था फूलों से, मग़र फसले खार आ गाया।
कर माफ ख़ता , फिर से तेरे दर पे खतावार आ गया।

तूफां के बाद मैं, ठहरा हुआ दरिया हूं चुप हूं यारब,
समझे कश्ती किनारे लगी, मग़र फिर से मझधार आ गया।


दौलत-ए-हुस्न ने बरपा किए, हज़ारों कहर बारहा,
अब मरने को थे हम, तो क्यूं तेरा सलाम आ गया।


बिछुड़ के खाई थी कसमें, करेंगे ना अब याद तुम्हें,
बरसा जो सावन, तो यूं ही तेरा ख़्याल आ गया।


तोड़ कर अहदे वफ़ा , चले गये थे तुम्ही  सनम,
अब जी रहे थे सुकूं से, तो हम पे इल्ज़ाम आ गया।


॑॑॑॑॑॑॑॑॑॑॑॑॑॑॑॑॑॑॑॑॑॑॑॑॑॑॑॑॑॑॑॑॑॑
              (पांच)
जब हुस्न की गुफ्तगू होने लगी । 
यादें तनहाई के बीज बोने लगी ।


आंखें खुली थीं उनके आने तलक,
उठ कर चले गए वो अंजुमन सोने लगी।


हमने तो अश्क पी लिए तेरे हिज्र में,
देख हाल-ए-आशिक दुनिया रोने लगी।


सूख गया दरिया-ए-वफ़ा तेरा शहर ,
आंखें हमारी समन्दर समन्दर होने लगीं।


चली है बात अश्कों की यहां वहां,
मैय्यत पे मेरी, तुम क्यों दामन भिगोने लगी।


॑॑॑॑॑॑॑॑॑॑॑॑॑॑॑॑॑॑॑॑॑॑॑॑॑॑॑॑॑॑॑॑






शुक्रवार, 4 फ़रवरी 2011

मुट्ठी में कैद इन्सान



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जहां में सलीबों पे टंगें, अरमान बहुत हैं।
मुट्ठी में कैद, खुद ही, इन्सान बहुत हैं।


आवाज़ दे के बुलाए, ये मुमकिन ही नहीं,
यूं तो हर मोड़ पे बैठे, निगहबान बहुत हैं।


किस सोच में तूं चुप है, ए-चारागर बता,
बाकी अभी तो तेरे, इम्तहान बहुत हैं।


जिल्लत से जीना छोड़, जिन्दादिली अपनाईये,
बन्धन सभी फिर तोड़ना, आसान बहुत हैं।


हर सिम्त तेरे चर्चे, क्यूं आम है "नरेश"
दुनिया में तुमसे और भी इन्सान बहुत हैं।
॑॑॑॑॑॑॑॑॑॑॑॑॑॑॑॑॑॑॑॑॑॑॑॑॑॑॑

रविवार, 30 जनवरी 2011

बोल उठेंगे खंडहर भी देखिए


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दहशत की रातें, रतजगों का मन्जर भी देखिए।
चुप है ये जमीं, उठ रहा जो समन्दर भी देखिए।


क्यों उछल कूद रहे हो, इन्सानियत के सीने पर,
आदमी तो बन रहा फिर से, बन्दर भी देखिए ।


इन्सानियत की खातिर, बहादुरी दिखाता नहीं कोई,
इश्क-ओ-कुर्सी के बहुत हैं, धुरन्दर भी देखिए ।


कर रहे हो तुम, जिन परस्तारों पर यकीन,
छुपा है उनकी, आस्तीनों में खन्जर भी देखिए ।


क्यों लड़ रहे हो तुम, इन सब्ज बागों की खातिर,
इस कदर तो हो जाएगी जमीं, बन्जर भी देखिए।


सितम सह लिए हमने, अब तलक चुप रह कर,
सर से गुज़रे तो बोल उठेंगे, खंड़हर भी देखिए।


माजी के मझधार में क्यों डूब रहे हो "नरेश"
मुस्तकबिल के किनारों से बन्धा है, लंगर भी देखिए।
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गुरुवार, 27 जनवरी 2011

तन्हाईयों का खौफ


    
उदासियों के पल, हमसफर हो गए।
इसी तरह से दिन, बसर हो गए ।


गांव दिल, में जो सुकूं के बसाए थे,
तन्हाईयों के खौफ से, नगर हो गए।


मिले थे जो लम्हात, हसरतों के लिए,
कशमकश में ही वो, यूं ही गुज़र हो गए।


जो चराग़ हमने, जलाए थे इबादत के लिए,
चराग़ वो, ज़ालिम, आंधियों की नज़र हो गए।


ताज़ बने होंगे कितने ही मग़र, एक को छोड़,
सबके सब, बे-वफ़ाई से खंडहर हो गए।


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सोमवार, 10 जनवरी 2011

जहां है जिन्दगी अपनी

बड़ी  वीरान-ओ-परेशां है ये जिन्दगी अपनी।
फ़कत चन्द लम्हों की मेहमां है जिन्दगी अपनी।


क्या खिलेंगे फूल भला, कैसे आएंगी बहारें,
अब तो इक उजड़ा गुलिस्तां है जिन्दगी अपनी।


कोई हमदम नहीं ना कोई हमनशीं अपना,
बेवज़ह हुई किस तरफ रवां ये जिन्दगी अपनी।


तेरे शहर में भला क्यूं कर रहेंगे हम ए दोस्त,
जो मिट चुका जहां से वो निशां है जिन्दगी अपनी।


वफ़ा फरोश जहां रास नहीं आ सका मुझको,
सहरा की तरहा आज बियाबां जिन्दगी है अपनी।


था जिस पे नाज़ वो दोस्त, दोस्त ही ना रहा,
कि जिसके नाम पे तमाम कुर्बां है जिन्दगी अपनी।


ना करना मौत पर मेरी तूं जरा भी अफसोस,
अब तो इक बोझ और एहसां है जिन्दगी अपनी।


तुझे "नरेश’ बहारों की तमन्ना है भला क्यूं कर
वहीं पे ठीक है जहां पे है ये जिन्दगी आपनी।
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