प्रकृति का यह कैसा क्रूर नियम है कि, बड़ी मछली छोटी मछली का पोषण करने की बजाय उसे निगल जाती है। मेरा यह ब्लोग "कविता की महक" बड़ी मछली का शिकार होने वालों को समर्पित है।
रविवार, 24 जुलाई 2011
रब का सज़दा..
दिल्लगी में, क्या खोया क्या मिला। अजीब है ये , मोहब्बत का सिला।
मन की मुराद, पूरी हुई किसी की, तो किसी को है, जिन्दगी से गिला।
रब के सज़दे में, अभी होश हैं बाकी , ऎ वाईज़ इबादत के दो घूंट और पिला।
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