प्रकृति का यह कैसा क्रूर नियम है कि, बड़ी मछली छोटी मछली का पोषण करने की बजाय उसे निगल जाती है। मेरा यह ब्लोग "कविता की महक" बड़ी मछली का शिकार होने वालों को समर्पित है।
शनिवार, 9 जुलाई 2011
जिन्दगी ख़्वाबों से हार गई
जिन्दगी मेरी ख़्वाबों, से जब हार गई। लौटे जब तलक़, गुलशन से बहार गई।
ये जिन्दगी इक खूबसूरत हादसा सा है, कभी बरखा, कभी पतझड़, कभी बहार हुई।
ढूंढती रहती थी, जिनको नज़रें, यहां वहां, हुआ सामना तो, तबियत क्यूं बेकरार हुई। *******************************
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