दिल की बस्ती को, दौलत-ए-इश्क से आबाद कीजिए।
कर मशक्कत, जवां उम्मीदों को हकीकत में बदलो,
हर लम्हा बेशकीमत है, इसे यूं ही ना बर्बाद किजिए।
है फ़लसफ़ा ये आम, कि चलना ही जिन्दगी है,
मग़र क्या खोया-पाया, इसका भी तो हिसाब किजिए।
चाहा जो आज तक न मिला, कोई ग़म ना करो,
कल क्यों नहीं मिलेगा दिल से फ़रियाद तो किजिए।
शिकवा उसी से होगा , जो दिल के करीब है-ए-दोस्त
उसकी ख़ता को भूल कर, अपना दिल साफ़ किजिए।
तिनका-तिनका जोड़ कर, बनता है आशियाना,
दिल से दिल को जोड़ कर रिश्तों का अहसास किजिए।
आए रक़ीब भी, जो कभी मेहमां की शक्ल मे,
उसका भी हरेक सिम्त इस्तक़बाल किजिए।
जिसने किया हो गुनाह, सज़ा भी उसी को मिले.,
गर हो मुंसिफ़ तो मजलूम का इन्साफ किजिए।
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