सुबह फिर ना हुई, चराग़ बुझ जाने के बाद।
हम अश-आर सुना रहे थे, भरी महफिल में,
सभी ने देखा मुझे, तेरे मुस्कुराने के बाद।
झुकता है सर मेरा, तेरी चौखट पे अब भी,
बाज़ नहीं आता यह दिल, ठुकराए जाने के बाद।
पूछते हो तुम हमसे, हमारी मुहब्बत का सिला,
नज़र फेर कर, दिल पे जख़्म लगाने के बाद।
इन्तेहा हो चुकी, बहुत सह लिए जुल्म जमाने के,
अश्कबार करेगा मेरा फसाना, मेरे ऊठ जाने के बाद।
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