शनिवार, 12 मार्च 2011

हमें ना आज़माओ यार


    
हम तो रिन्द हैं हमें ना आजमाओ यार ।
मयकदे से उठी है मैय्यत सर तो झुकाओ यार।


सरापा है खुमार, और जुनून दीवानगी का,
मिला के सुर्ख आंखें, और ना पिलाओ यार।


चन्द घड़ियों के मेहमां हैं, कूच कर जाएंगे,
दीदार-ए-यार कर लें, ज़रा पर्दा उठाओ यार।


तारीकियां मिलीं अब तलक, तेरे शहर में हमें,
फिर है "नरेश" चौखट पे, चराग़ तो जलाओ यार।


नसीबों में अपने लिखा था, दामन भिगोते रहना,
रास न आएगा तुम्हें, घुटनों से सर तो उठाओ यार।
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