है मुख्तसर सा किस्सा , बस इतनी सी कहानी है।
उभरे हैं डूब- डूब के, भला ये कैसी जिन्दगानी है।
बज रही हैं उनके दर पे, शहनाईयां कुछ इस तरहा,
सुन सुन के जिनको, मेरे दिल पे छाई वीरानी है।
हम वफ़ादार हैं पर, रास न आ सकी हमको वफ़ा,
इक टूटा दिल बचा, माज़ी की बस निशानी है।
बेख़बर हो गए वो, तोड़ कर शीशा-ए-दिल,
चेहरे पे उनके शिकन है, न आंखों में पशेमानी है।
मांगा है आज हमने उनसे, ग़ुज़रे दौर का हर्जा,
खून-ए-ज़िग़र दिखाया उन्हें, तो हंस के कहा पानी है।
जब्त कर ए-"नरेश", होठ अपने सी ले तूं ,
साहिल पे भी मिली तुझे, मौजों की ये रवानी है।
॑॑॑॑॑॑॑॑॑॑॑॑॑॑॑॑॑॑॑॑॑॑॑॑॑॑॑॑॑॑॑
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें