रविवार, 11 सितंबर 2011

चराग़ जला के देखो


अंधेरे घर में कभी चराग़ जला के तो देखो।
खुद को तूफ़ां का इम्तहान बना के तो देखो।


हौंसलों के फूल,  खिलते हैं खिजां  में भी,
पत्थरों  से कभी, दिल लगा  के तो  देखो।


लहरें भी चूमती हैं, प्यार करने वालों को,
समन्दर के किनारे, मकां बना के तो देखो।

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