प्रकृति का यह कैसा क्रूर नियम है कि, बड़ी मछली छोटी मछली का पोषण करने की बजाय उसे निगल जाती है। मेरा यह ब्लोग "कविता की महक" बड़ी मछली का शिकार होने वालों को समर्पित है।
रविवार, 25 सितंबर 2011
चाहिए प्रेम की पतवार
जब खड़ी हो रंजिश की दीवार। चाहिए तब प्रेम की पतवार।
समन्दर हो नसीब अपना. तो हो जाएं कश्ती पे सवार।
खिज़ां के पत्तों को समेट लो, गुलशन में फिर आएगी बहार।
गर जीतने का भी हो ज़ज़बा, तो किस्मत बाज़ी जाएगी हार। **********************
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