
किसी के घर की, रोशनी चुरा कर,
अपने दिल में, उजाला कैसे होगा।
मुफ़लिसी में अगर,बच्चे होंगे भूखे,
तो,मां के पेट का निवाला कैसे होगा।
रहम नहीं, इन्सां का इन्सां के लिए,
तो मेहरबां कैसे, उपर वाला होगा।
जो चला, मख़मली कदमों से ताउम्र,
इन पत्थरों में खुद को सम्भला कैसे होगा।
बुलन्द हौंसलों से जो चला, मुश्किल राहों पे,
उस मंजिल पे,जमाने का ताला कैसे होगा।
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