दिल की दास्तां कह गए
आंख से आंसू निकले, दिल की दास्तां कह गए।
आसमां में उड़ने वाले परिन्दे, पानी में बह गए।
बुनियाद की मिट्टी बन, इमारत को रखा बुलन्द,
कन्गूरों की बेदर्द शरारत से, सारे मकां ढ़ह गए ।
अपने नसीबों को छोड़ा था, जिनकी सरपरस्ती में
लूट कर ले गए चैन-ओ-सुकूं, एहसां भी दे गए।
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