शनिवार, 6 अगस्त 2011

दिल की दास्तां कह गए


आंख से आंसू निकले, दिल की दास्तां कह गए।
आसमां में उड़ने वाले परिन्दे, पानी में बह गए।


बुनियाद की मिट्टी बन, इमारत को रखा बुलन्द,
कन्गूरों की बेदर्द शरारत से, सारे मकां ढ़ह गए ।


अपने नसीबों को छोड़ा था, जिनकी सरपरस्ती में
लूट कर ले गए चैन-ओ-सुकूं, एहसां  भी दे गए।
****************************

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें