दरक गई आवाज़ चहकती सी
दरक गई आवाज़, चहकती सी।
कहां गई बगिया, वो महकती सी।
ढूंढता है हर शख़्स, इन्सानियत को,
ईमान की जलती, चिताएं दहकती सी।
गंगा, यमुना,सरस्वती खमोश हैं क्यूं,
बहती थी जो धरती में यूं लहकती सी।
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कल तो फैले थे यहां से वहां तक वो,
अब तो जिन्दगी है बस सिमटती सी।
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