प्रकृति का यह कैसा क्रूर नियम है कि, बड़ी मछली छोटी मछली का पोषण करने की बजाय उसे निगल जाती है। मेरा यह ब्लोग "कविता की महक" बड़ी मछली का शिकार होने वालों को समर्पित है।
दुश्मन को भी दोस्त बना के देखा. अन्धेरों में भी चराग़ जला के देखा. फ़र्ज समझ के रिश्तों को निभाया, नाराज़ को भी गले लगा कर देखा. पालकर दिल के कबूतर आसमां में, रुख़सार खिलाफ़ भी भी उड़ाकर देखा. ****************************
कभी आन्धी कभी तूफां ने घेरा. जिन्दगी है,खुशी-ग़म का डेरा. कहीं सुकूं की मजिल दूर दिखी, कहीं है सुख की छांव का बसेरा. कर्म किया तो वो मिल जाएगा, परेशां सा क्यूं करता है तेरा मेरा. **********************
चाहत का दीपक जला के रखना, कहा था, मेरा इन्तज़ार करना. नसीब में हो ना हो, दम भरना मग़र सांसों को अमर रखना. वादा "दिया" था तुमने भी, मेरे आने तलक, ना मरना. *************************
मैंने तो आवाज दी थी, मगर तुमने सुना नहीं. झोली में थे किस्मत के धागे, मग़र बुना नहीं. अन्ज़ुमन छोड़ कर जा रहा था,मेरा हम नवा, चौराहे पे खड़ा रहा मैं , कोई रास्ता चुना नहीं. ***************************