प्रकृति का यह कैसा क्रूर नियम है कि, बड़ी मछली छोटी मछली का पोषण करने की बजाय उसे निगल जाती है। मेरा यह ब्लोग "कविता की महक" बड़ी मछली का शिकार होने वालों को समर्पित है।
सोमवार, 11 फ़रवरी 2013
आवाज सुनी नहीं
मैंने तो आवाज दी थी, मगर तुमने सुना नहीं. झोली में थे किस्मत के धागे, मग़र बुना नहीं. अन्ज़ुमन छोड़ कर जा रहा था,मेरा हम नवा, चौराहे पे खड़ा रहा मैं , कोई रास्ता चुना नहीं. ***************************
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