प्रकृति का यह कैसा क्रूर नियम है कि, बड़ी मछली छोटी मछली का पोषण करने की बजाय उसे निगल जाती है। मेरा यह ब्लोग "कविता की महक" बड़ी मछली का शिकार होने वालों को समर्पित है।
रविवार, 7 जुलाई 2013
जिन्दगी खुशी-ग़म का डेरा
कभी आन्धी कभी तूफां ने घेरा. जिन्दगी है,खुशी-ग़म का डेरा. कहीं सुकूं की मजिल दूर दिखी, कहीं है सुख की छांव का बसेरा. कर्म किया तो वो मिल जाएगा, परेशां सा क्यूं करता है तेरा मेरा. **********************
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