समां हो ग़मगीन, तो मीठे पलों को याद कीजिए।
दिल की बस्ती को, दौलत-ए-इश्क से आबाद कीजिए।
कर मशक्कत, जवां उम्मीदों को हकीकत में बदलो,
हर लम्हा बेशकीमत है, इसे यूं ही ना बर्बाद किजिए।
है फ़लसफ़ा ये आम, कि चलना ही जिन्दगी है,
मग़र क्या खोया-पाया, इसका भी तो हिसाब किजिए।
चाहा जो आज तक न मिला, कोई ग़म ना करो,
कल क्यों नहीं मिलेगा दिल से फ़रियाद तो किजिए।
शिकवा उसी से होगा , जो दिल के करीब है-ए-दोस्त
उसकी ख़ता को भूल कर, अपना दिल साफ़ किजिए।
तिनका-तिनका जोड़ कर, बनता है आशियाना,
दिल से दिल को जोड़ कर रिश्तों का अहसास किजिए।
आए रक़ीब भी, जो कभी मेहमां की शक्ल मे,
उसका भी हरेक सिम्त इस्तक़बाल किजिए।
जिसने किया हो गुनाह, सज़ा भी उसी को मिले.,
गर हो मुंसिफ़ तो मजलूम का इन्साफ किजिए।
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शब-ए-फ़ुर्कत में , बीते दिनों की याद आती है।
रफ़्ता-रफ़्ता यूं ही, उम्र-ए-तमाम बीत जाती है।
ये शिद्दत-ए-दर्द, बहुत हो चुकी है सनम,
फ़रिश्ते आ गए, तुम भी आओ, के जान जाती है।
हम भला ग़वारा करें, तर्के उल्फ़त को कैसे,
इक यही चीज़ तो, दुनिया में काम आती है।
मुनकतआ कैसे तआल्लुक हो, मय-ओ-मीना से,
मुझको प्याले में भी, सूरत तेरी नज़र आती है।
तलकीन कर रहे हैं, दोस्त अहबाब ’नरेश" को फिर भी,
लिखता है जो पैग़ाम, वो तेरी ही तहरीर बन जाती है।
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दूर वीराने में , इक शमां जल रही है कहीं।
सोचता हूं ये, किसी दिलजले का दिल तो नहीं।
हम पे अहसां किया, दिल में जगाह दी तूनें,
वरना ऎसे इन्सां, प्यार के काबिल तो नहीं।
साज़-ए-दिल बज रहा है, शेर है अंजुमन में,
जलवों की है गुफ़्तगू , कोई महफ़िल तो नहीं।
पुरख़तर है राह-ए-मुहब्बत हो, खौफ़ नहीं ज़रा भी,
इश्क वालों का डरना, इनकी फ़ितरत में शामिल तो नहीं।
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लब सी लिए हमने, तेरे रूठ जाने के बाद।
सुबह फिर ना हुई, चराग़ बुझ जाने के बाद।
हम अश-आर सुना रहे थे, भरी महफिल में,
सभी ने देखा मुझे, तेरे मुस्कुराने के बाद।
झुकता है सर मेरा, तेरी चौखट पे अब भी,
बाज़ नहीं आता यह दिल, ठुकराए जाने के बाद।
पूछते हो तुम हमसे, हमारी मुहब्बत का सिला,
नज़र फेर कर, दिल पे जख़्म लगाने के बाद।
इन्तेहा हो चुकी, बहुत सह लिए जुल्म जमाने के,
अश्कबार करेगा मेरा फसाना, मेरे ऊठ जाने के बाद।
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हम तो रिन्द हैं हमें ना आजमाओ यार ।
मयकदे से उठी है मैय्यत सर तो झुकाओ यार।
सरापा है खुमार, और जुनून दीवानगी का,
मिला के सुर्ख आंखें, और ना पिलाओ यार।
चन्द घड़ियों के मेहमां हैं, कूच कर जाएंगे,
दीदार-ए-यार कर लें, ज़रा पर्दा उठाओ यार।
तारीकियां मिलीं अब तलक, तेरे शहर में हमें,
फिर है "नरेश" चौखट पे, चराग़ तो जलाओ यार।
नसीबों में अपने लिखा था, दामन भिगोते रहना,
रास न आएगा तुम्हें, घुटनों से सर तो उठाओ यार।
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की ख़्वाहिशें गुलिस्तां की, तो खार हाथ आए हैं।
इस मक़तबाए इश्क ने, कई नौज़वां मिटाए हैं।
कहा करते थे, ना छोड़ेंगे दहर तक दामन तेरा,
गर्दिशे दौरां में वो कहीं, नज़र नहीं आए हैं।
वफ़ा के फूल भर के गए थे, दामन-ए-दिल में,
बज़्म-ए-हुस्न से हम, घबरा के लौट आए हैं।
कर बैठे भरोसा जो उस, मासूम तबस्सुम का,
इक ऎतबार करके, हजारों फ़रेब खाए हैं।
गिला तुझसे करें, किस बात का ए-रक़ीब,
शहर-ए-वफ़ा में, किसने मंजिल के निशां पाए हैं।
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है मुख्तसर सा किस्सा , बस इतनी सी कहानी है।
उभरे हैं डूब- डूब के, भला ये कैसी जिन्दगानी है।
बज रही हैं उनके दर पे, शहनाईयां कुछ इस तरहा,
सुन सुन के जिनको, मेरे दिल पे छाई वीरानी है।
हम वफ़ादार हैं पर, रास न आ सकी हमको वफ़ा,
इक टूटा दिल बचा, माज़ी की बस निशानी है।
बेख़बर हो गए वो, तोड़ कर शीशा-ए-दिल,
चेहरे पे उनके शिकन है, न आंखों में पशेमानी है।
मांगा है आज हमने उनसे, ग़ुज़रे दौर का हर्जा,
खून-ए-ज़िग़र दिखाया उन्हें, तो हंस के कहा पानी है।
जब्त कर ए-"नरेश", होठ अपने सी ले तूं ,
साहिल पे भी मिली तुझे, मौजों की ये रवानी है।
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