सोमवार, 3 मार्च 2014

सपने देखें



सपने देखे आसमां के, मगर जमीं पर रहकर.
हकीकत भी को परखा, मगर जमीं पर रहकर.

सुकूं मिले या ना मिले, मेरे हिस्से का यारब,
दूसरों के दर्द को,महसूस किया जमीं पर रहकर.

इतना आसां नहीं है आसमानों पर उड़ना भी,
परवाज से,वाकिफ़ होना पड़ेगा जमीं पर रहकर.
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