बुधवार, 5 मार्च 2014

आशियाना देखा

जिन्दगी में कभी ग़म,कभी मुस्कुराना देखा.

अपनों का दिल भी,अक्सर बेग़ाना देखा.


यूं अपना दामन बचा के चलता है हर शख़्स,

हश्र जानते हुए शमां पर जलता परवाना देखा.


अपना फ़र्ज समझ के अक्सर निकले सफ़र को ,

शाम ढली तो परिन्दों ने अपना आशियाना देखा.
___________________________________________

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें