शनिवार, 3 नवंबर 2012

गुलाबी धूप में सफ़ेद गुलाब


आस्था की इस डोर से बन्धा है मेरा आशियाना,
वरना बेरहम तूफ़ां ने तो कई बार झकझोरा है इसे.
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सुबह की गुलाबी धूप,
दिल पर दस्तक दे कर,
किसी की याद दिलाती है,
जैसे अंगुलियों की छुअन,
बदन को एहसास दिलाती है,
किसी अपनेपन का-
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आसमां और धरती के करीब, दिल की डोर बिछ गई,
ख्वाबों के पंखों पर उड़ने लगी है, विश्वास की पतंग. 
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जब दिल खोल कर बरसा आसमां, 
तो रेत के टीलों पर हरियाली मुस्कुरा उठी
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कांच के महलों से टूटे हैं, ना जाने कितने ही रिश्ते,
मग़र पत्थरों के घर, किसी का दिल तोड़ते नहीं. ..
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दिल जीत लिया तुमने, तो जिस्म में बचा ही क्या है, 
दर्द लेकर लगा यूं, जैसे खुशी का खिलौना मिल गया..
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तूं छोड़कर चला गया रुसवा हो कर तो क्या,
साया और यादों की धूप साथ चलते है अब भी.
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एक खूबसूरत लम्हा ही काफी है,
अन्धेरे महल की लम्बी जिन्दगी से..
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आंख से बहे अश्क , ग़म जताते है या खुशी बरसाते है.
सम्भल के चलना,अक्सर जिन्दगी के कदम डगमगाते है.
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शुक्राना अदा किया है, जिन्दगी के हरेक अहसां का,
हमने तो बस, अपनी जिन्दगी बना लिया था तुम्हें.
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रंगों से भरा था इस दिल का कैनवस ,
हर रंग में बस ,तेरी तस्वीर ही नज़र आई.
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