प्रकृति का यह कैसा क्रूर नियम है कि, बड़ी मछली छोटी मछली का पोषण करने की बजाय उसे निगल जाती है। मेरा यह ब्लोग "कविता की महक" बड़ी मछली का शिकार होने वालों को समर्पित है।
बुधवार, 29 अगस्त 2012
आंगन की धूप सा
आंगन की धूप सा मिट्टी के रूप सा जिन्दगी से निकला दरवाजे की धूल सा मंजिल के करीब बने राहगीर की भूल सा टूटा है कई मर्तबा धागा ये मजबूत सा ठोकर खाई, ना गिरा पैर बनके उसूल सा अडिग रहा वचन लक्ष्य मजबूत सा ***********
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