प्रकृति का यह कैसा क्रूर नियम है कि, बड़ी मछली छोटी मछली का पोषण करने की बजाय उसे निगल जाती है। मेरा यह ब्लोग "कविता की महक" बड़ी मछली का शिकार होने वालों को समर्पित है।
मंगलवार, 4 सितंबर 2012
अजीब है
अजीब है, इस जिन्दगी का फ़साना. किसी को हंसना ,किसी को रूलाना. डूब के इस में, हुआ फ़कीर कोई , तो किसी को, मिल गया नज़राना. **********************
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें