रूठ कर कहा, ख़्मखाह मुझे
बदनाम करते हो
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बदनाम करते हो
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आज बरसात का मौसम है
पूरे दिन सुबह रहेगी यारब
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लम्हे जो बीत गए , उन्हे मैं खोना नहीं चाहता।
इस मिट्टी में दुश्मनी के बीज बोना नहीं चाहता।
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जब भी सम्भल कर चलने की कोशिश की
तो फिसल गया
मग़र लापरवाह हो कर चला जब मैं
तो ज़माने की दाद मिली
तो फिसल गया
मग़र लापरवाह हो कर चला जब मैं
तो ज़माने की दाद मिली



