प्रकृति का यह कैसा क्रूर नियम है कि, बड़ी मछली छोटी मछली का पोषण करने की बजाय उसे निगल जाती है। मेरा यह ब्लोग "कविता की महक" बड़ी मछली का शिकार होने वालों को समर्पित है।
रविवार, 2 नवंबर 2014
जीत पे जश्न क्यों
जीतने पे जश्न क्यों, हारने पे दुख़ कैसा. जहां बात हो सेवा की, तो सांप सा मुख कैसा. चल पड़े सफ़र में तो, देखना सुख़-दुख़ कैसा.
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