बुधवार, 12 मार्च 2014

ग़ज़ल

मौसम की तरहा बदले,उस पर भरोसा मत कीजिए.
तैरना आता भी हो,गहराई पर भरोसा मत कीजिए.

यूं तो मंजिले पाने के भी, रास्ते बहुत हैं यारब,
मग़र अनजान रास्तों पर, भरोसा मत कीजिए.
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बुधवार, 5 मार्च 2014

आशियाना देखा

जिन्दगी में कभी ग़म,कभी मुस्कुराना देखा.

अपनों का दिल भी,अक्सर बेग़ाना देखा.


यूं अपना दामन बचा के चलता है हर शख़्स,

हश्र जानते हुए शमां पर जलता परवाना देखा.


अपना फ़र्ज समझ के अक्सर निकले सफ़र को ,

शाम ढली तो परिन्दों ने अपना आशियाना देखा.
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सोमवार, 3 मार्च 2014

सपने देखें



सपने देखे आसमां के, मगर जमीं पर रहकर.
हकीकत भी को परखा, मगर जमीं पर रहकर.

सुकूं मिले या ना मिले, मेरे हिस्से का यारब,
दूसरों के दर्द को,महसूस किया जमीं पर रहकर.

इतना आसां नहीं है आसमानों पर उड़ना भी,
परवाज से,वाकिफ़ होना पड़ेगा जमीं पर रहकर.
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