बुधवार, 29 अगस्त 2012

आंगन की धूप सा


आंगन की धूप सा 
मिट्टी के रूप सा

जिन्दगी से निकला
दरवाजे की धूल सा

मंजिल के करीब बने 
राहगीर की भूल सा

टूटा है कई मर्तबा
धागा ये मजबूत सा

ठोकर खाई, ना गिरा
पैर बनके उसूल सा

अडिग रहा वचन
लक्ष्य मजबूत सा
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गुरुवार, 23 अगस्त 2012

खुशबू


खुशबू बन,हर गली -मोड़ को महकाना चाहता हूं..
दुश्मनों के हर शहर में,बस दोस्ताना चाहता हूं.
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तकदीर की आंख से, दिल का,ज़ख़्म देखा है.
दोस्ती के राग़ से,टूटा हुआ तरन्नुम 
देखा है
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जिन्दगी तो, हकीकत से ही चलती है। 
यूं कितनी मुरादें, दिल में मचलती हैं
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नाराज़ होकर चली गई किस्मत,मेरी हकीकत से,
सपनों का बोझ उठ कर कहां तक चलेगी ये जिन्दगी

बुधवार, 22 अगस्त 2012

वो सवाल कहां ?


घर के आंगन में सजा ही रहे, अब वो धमाल कहां.
गले में लिपटकर, हाथों को महकाए वो रूमाल कहां.

राज़-ए-उल्फ़त दिल में, वाक़िफ़ हो जाए सारा जहां,
नसीबों की स्याही का रंग जो बदले, वो कमाल कहां.

हर तरफ़ सजते हैं ईमां के साज़-ओ-ताज़ मग़र,
हकीकत की बस्ती में ले जाए, अब वो ख़्वाब कहां.
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