प्रकृति का यह कैसा क्रूर नियम है कि, बड़ी मछली छोटी मछली का पोषण करने की बजाय उसे निगल जाती है। मेरा यह ब्लोग "कविता की महक" बड़ी मछली का शिकार होने वालों को समर्पित है।
शनिवार, 3 मार्च 2012
जिन्दगी जब करवट बदलने लगी. नई सुबह के लिए रात ढलने लगी.
बसन्त ने चादर बिछा दी जमीं पर, हवाएं, खिजां के कपड़े बदलने लगी.
आशियां में नींद से जाग उठे परिन्दे, कोमल कलियां भी आंखे मलने लगी.
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें