शनिवार, 3 मार्च 2012


जिन्दगी जब करवट बदलने लगी.
नई सुबह के लिए रात ढलने लगी.


बसन्त ने चादर बिछा दी जमीं पर,
हवाएं, खिजां के कपड़े बदलने लगी.


आशियां में नींद से जाग उठे परिन्दे, 
कोमल कलियां भी आंखे मलने लगी.
****************************

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें