मंगलवार, 6 मार्च 2012

नाराज़ मौसम


आज फिर मौसम नाराज़ सा है.
जैसे गमग़ीन कोई साज सा है.


पतझड़ की बात करते हैं बागबां,
पत्तों का झड़ना बेआवाज़ सा है.


चल तो पड़ हूं मैं कारवां के साथ,
जिन्दगी का सफ़र आगाज़ सा है.

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