मंगलवार, 23 अगस्त 2011

दिल का चराग़ जलाया हो जैसे


वर्षा की बून्दों ने शीतलता का पाठ पढाया हो जैसे।
अपनेपन को मान-सम्मान का शाल ओढाया हो जैसे।


ठोकर खा रहे थे मंजिलों की खातिर, भटके मुसाफ़िर, 
उन अन्धेरे रस्तों पे दिल का चराग़ जलाया हो जैसे।


रोक ली ख़ुदगर्जी ने,जिन परिन्दों के हौंसलों की उड़ान,
गर्द  साफ  कर, आसमां की  सीढियां चढाया हो जैसे। 
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शनिवार, 6 अगस्त 2011

दिल की दास्तां कह गए


आंख से आंसू निकले, दिल की दास्तां कह गए।
आसमां में उड़ने वाले परिन्दे, पानी में बह गए।


बुनियाद की मिट्टी बन, इमारत को रखा बुलन्द,
कन्गूरों की बेदर्द शरारत से, सारे मकां ढ़ह गए ।


अपने नसीबों को छोड़ा था, जिनकी सरपरस्ती में
लूट कर ले गए चैन-ओ-सुकूं, एहसां  भी दे गए।
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मुराद-ए-इश्क मांगने की आदत नहीं


चिराग़-ए-जिन्न घिस कर मुराद-ए-इश्क मांगनें की आदत नहीं।
करेगा फ़िक्र "वो" ही मेरी, मुझे अपनी फ़िक्र करने की आदत नहीं।


नादान है ये  जिन्दगी, जो  लेती  है मेरा  इम्तहान बार बार,
उनके हसीन  महलों में, दरबारी बनने की  हमें आदत नहीं।


अपने महबूब को सीढियां बनकर , शिखर तक पहुंचाया मैने,.
दोस्त क्या दुशमन  को भी, नज़र से गिराने  की आदत नहीं।


पसमांदगी में भी अपने अज़्म को रखा बुलन्द हमने ए दोस्त,
ताश के पत्तों में हुक्म का गुलाम बनने की आदत नहीं।


जमाने के कहर से टूटा आशियां, खुले आसमाम में सो गए,
मुझे सुर्ख़ मयकदों में रात ग़ुज़ारने की   आदत नहीं।


जिस हाल में हूं खुश हूं मैं, ए- मेरे चाराग़र मुझे,
बेहिसाब ख़्वाहिशों के कबूतर, पालने की आदत नहीं।
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