रविवार, 24 जुलाई 2011

रब का सज़दा..


दिल्लगी में, क्या खोया क्या मिला।
अजीब है ये , मोहब्बत का सिला।


मन की मुराद, पूरी हुई किसी की,
तो किसी को है, जिन्दगी से गिला।


रब के सज़दे में, अभी होश हैं बाकी ,
ऎ वाईज़ इबादत के दो घूंट और पिला।

शनिवार, 9 जुलाई 2011

जिन्दगी ख़्वाबों से हार गई

जिन्दगी मेरी ख़्वाबों, से जब हार गई।
लौटे जब तलक़, गुलशन से बहार गई।


ये जिन्दगी इक खूबसूरत हादसा सा है,
कभी बरखा, कभी पतझड़, कभी बहार हुई।


ढूंढती रहती थी, जिनको नज़रें, यहां वहां,
हुआ सामना तो, तबियत क्यूं बेकरार हुई।
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बुधवार, 6 जुलाई 2011

टुकड़ों में बंटी जिन्दगी


मयकदों में यूं कटी जिदगी।
जैसे टुकड़ों में बंटी जिदगी।


रास्तों से भटके मुसाफ़िर,
किनारों से सटी जिन्दगी।


रौनक-ए- जहां में रह कर भी,
वनवासी सीता, बनी जिन्दगी।


ना चान्द, ना तारे दूर तलक,
खाली आसमां, बनी जिन्दगी।


छावं की तलाश में भटका,
कड़ी धूप सी बनी जिन्दगी।


दरवाजे बन्द हो ना हो कभी,
तालों की मांनिन्द अटी जिदगी।


मदद-ए- महल तामीर किया,
सितमग़र, तूफ़ां से ढ़ही जिन्दगी


यूं उम्र तो हर साल  बढी मग़र,
लम्हा लम्हा  , घटी जिन्दगी।
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