प्रकृति का यह कैसा क्रूर नियम है कि, बड़ी मछली छोटी मछली का पोषण करने की बजाय उसे निगल जाती है। मेरा यह ब्लोग "कविता की महक" बड़ी मछली का शिकार होने वालों को समर्पित है।
सोमवार, 19 मार्च 2012
दिल की नगरी में, इक घर बनाऊं. अंधियारी राहों में, नेह दीप जलाऊं.
इतना प्यार, मिला है अपनों से, इस कर्ज़ को, भला मैं कैसे चुकाऊं.
बसन्त हो हर दिन सबके जीवन में, बनफूल,सब की बगिया को महकाऊं ********************************