सोमवार, 19 मार्च 2012


दिल की नगरी में, इक घर बनाऊं.
अंधियारी राहों में, नेह दीप जलाऊं.


इतना प्यार, मिला है अपनों से,
इस कर्ज़ को, भला मैं कैसे चुकाऊं.


बसन्त हो हर दिन सबके जीवन में,
बनफूल,सब की बगिया को महकाऊं
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मंगलवार, 6 मार्च 2012

नाराज़ मौसम


आज फिर मौसम नाराज़ सा है.
जैसे गमग़ीन कोई साज सा है.


पतझड़ की बात करते हैं बागबां,
पत्तों का झड़ना बेआवाज़ सा है.


चल तो पड़ हूं मैं कारवां के साथ,
जिन्दगी का सफ़र आगाज़ सा है.

सोमवार, 5 मार्च 2012

बरसती आंख

यह बरसती आंख, दिल पर भारी है.
रात की नींद, या हाला की खुमारी है.

इक-दूजे के लिए जीते हैं लोग बारहा,
वरना तो बेमज़ा, ये जिन्दगी सारी है.

देखें हैं महलों के ख़्वाब सभी ने, मगर,
आस के टूटे मकां में, कितनी लाचारी है.

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शनिवार, 3 मार्च 2012


जिन्दगी जब करवट बदलने लगी.
नई सुबह के लिए रात ढलने लगी.


बसन्त ने चादर बिछा दी जमीं पर,
हवाएं, खिजां के कपड़े बदलने लगी.


आशियां में नींद से जाग उठे परिन्दे, 
कोमल कलियां भी आंखे मलने लगी.
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