जब खड़ी हो रंजिश की दीवार।
चाहिए तब प्रेम की पतवार।
समन्दर हो नसीब अपना.
तो हो जाएं कश्ती पे सवार।
खिज़ां के पत्तों को समेट लो,
गुलशन में फिर आएगी बहार।
गर जीतने का भी हो ज़ज़बा,
तो किस्मत बाज़ी जाएगी हार।
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अंधेरे घर में कभी चराग़ जला के तो देखो।
खुद को तूफ़ां का इम्तहान बना के तो देखो।
हौंसलों के फूल, खिलते हैं खिजां में भी,
पत्थरों से कभी, दिल लगा के तो देखो।
लहरें भी चूमती हैं, प्यार करने वालों को,
समन्दर के किनारे, मकां बना के तो देखो।