शुक्रवार, 4 मई 2012

तनहा हुए कभी


दिल के रस्ते दिल की मंजिल को पा लेना कभी. 
सर रख के सीने पे जुल्फ़ों को छितरा लेना कभी.


तनहा हुए कभी तो दिल में तस्वीर टांग ली उनकी, 
तस्सवुरे जानां समझ दीवारों से बातें करना कभी.
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मुक़द्दर की बात


उनका बिछुड़ के फिर , मिलना मुक़द्दर की बात है.
सूख़ी हथेली पे फूलों का खिलना मुक़द्दर की बात है.


पत्थरों को तोड़ कर तो बहती है पानी की धाराएं भी,
पत्थर दिल आंख से आंसूं का बहना मुक़द्दर की बात है.
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अधूरी मुलाक़ात


जिन्दगी के सफ़र में, वो साथ छोड़ गया.
बीच मझधार में ही, मेरा हाथ छोड़ गया.


पहली बार मिले, तो मैंने हकीकत ब्यां की,
तल्ख़ लफ़्ज़ों से,अधूरी मुलाकात छोड़ गया.
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सुरमई शाम


आंखें झुकीं,जैसे सुरमई शाम सी.
बन्द दरवाजों में, नींद सरेआम सी.


इन्तज़ार,  इतना भी ना हो किसी का,
कि फ़ासलों की गाड़ी, हो जाए बेलग़ाम सी.

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