प्रकृति का यह कैसा क्रूर नियम है कि, बड़ी मछली छोटी मछली का पोषण करने की बजाय उसे निगल जाती है। मेरा यह ब्लोग "कविता की महक" बड़ी मछली का शिकार होने वालों को समर्पित है।
शनिवार, 21 अप्रैल 2012
उनका बिछुड़ना-मिलना
उनका बिछुड़ के फिर , मिलना मुक़द्दर की बात है. सूख़ी हथेली पे फूलों का खिलना मुक़द्दर की बात है.
पत्थरों को तोड़ कर तो बहती है पानी की धाराएं भी, पत्थर दिल आंख से आंसूं का बहना मुक़द्दर की बात है. -------------------------------------------------
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