प्रकृति का यह कैसा क्रूर नियम है कि, बड़ी मछली छोटी मछली का पोषण करने की बजाय उसे निगल जाती है। मेरा यह ब्लोग "कविता की महक" बड़ी मछली का शिकार होने वालों को समर्पित है।
दुश्मन को भी दोस्त बना के देखा. अन्धेरों में भी चराग़ जला के देखा. फ़र्ज समझ के रिश्तों को निभाया, नाराज़ को भी गले लगा कर देखा. पालकर दिल के कबूतर आसमां में, रुख़सार खिलाफ़ भी भी उड़ाकर देखा. ****************************