रविवार, 6 अक्टूबर 2013

अन्धेरों में चराग़ जला

दुश्मन को भी दोस्त बना के देखा.
अन्धेरों में भी चराग़ जला के देखा.

फ़र्ज समझ के रिश्तों को निभाया,
नाराज़ को भी गले लगा कर देखा.

पालकर दिल के कबूतर आसमां में,
रुख़सार खिलाफ़ भी भी उड़ाकर देखा.
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