हर शख़्स के सिर पर चढा, ये जुनून किसका है.
जब, परेशानियों के आगोश में रहती है जिन्दगी,
फिर भला, इन महलों में बैठा ये सुकून किसका है.
शर्म भटकती है, इन्साफ़ की खातिर यहां-वहां,
बेह्या की तारीफ़ करे जो, वो कानून किसका है.
कहने को हजार मसीहा है, इस जहां में यारब,
मगर झोंपड़ी से निकला, ये मासूम किसका है.
सभी लेकर आए थे, मुहब्बत का पैग़ाम हाथों में,
इस महफ़िल में, ये आतिश-ए-मज़मून किसका
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